आखिर कब कम होगी प्राइवेट स्कूलों की मनमानी वसूली, लॉकडाउन के बावजूद भी नहीं छोड़ रहे मनमानी वसूली के मौके !
एक तरफ जहां प्राइवेट स्कूल पैसा वसूली के अड्डे बन गए हैं वहीं दूसरी तरफ सरकारी स्कूलों में पैसों के अवैध बंटवारे को भी नहीं किया जा सकता अनदेखा !
पिछले कुछ दिनों से प्राइवेट स्कुलों में फीस वसूली का मुद्दा चर्चा में है। सच पूछिये तो आजादी के बाद सबसे अधिक पतन शिक्षा व्यवस्था का ही हुआ है। प्राइवेट स्कूल पैसा वसूली के अड्डे बन गए हैं, और सरकारी स्कूल पैसों के अवैध बंटवारों के। प्राइवेट स्कूल अब विद्यालय नही मॉल बन गए हैं। वहां किताबें बिकती हैं, कपड़े बिक़तें हैं, जूते बिक़तें हैं, मोजे बिक़तें हैं, ट्यूशन के मास्टर बिक़तें हैं। कुछ स्कूलों में धर्म भी बिकने लगा है। ये सारे समान लागत मूल्य से दस गुना ज्यादा में बिक़तें हैं।
लॉक डाउन के दौरान विद्यालय बन्द हुए तो सरकार ने आदेश दिया कि मध्याह्न भोजन का पैसा प्रत्येक बच्चे के खाते में भेज दिया जाए। मतलब बंटवारा रुकना नही चाहिए उधर प्राइवेट स्कूलों ने कहा कि हम ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं इसलिय फीस जमा करिए। मतलब वसूली नही रुकेगी..दोनों अपने एजेंडे पर डंटे हुए हैं।
हमारे यहां नर्सरी में पढ़ने वाले बच्चों को भी ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं। जिन बच्चों का पोटी उनकी माताएँ धोती हैं उन बच्चों को भी ऑनलाइन पढाया जा रहा है। इस ऑनलाइन पढ़ाई का लाभ न बच्चा समझ रहा है न अभिभावक ..बस स्कूल प्रशासन समझ रहा है।
आज देखा कि डीपीएस जैसा बड़ा स्कूल ग्रुप मास्क बेंच रहा है वो भी 400 रुपये में। यह तो नैतिक पतन की पराकाष्ठा है। इन जैसे स्कूलों से निकला बच्चा कतई निष्ठावान नही हो सकता। खैर डीपीएस स्कूल ने कहा है कि यह मास्क उसका नही है। मास्क न भी हो तब भी किताबों,जूतों के नाम पर लूट कम नही होती। ऐसी दशा में ये प्रश्न उठता है की क्या लोग प्राइवेट स्कूलों के इस अनैतिकता का विरोध कर पाएंगे। इस लॉक डाउन का फीस तो कम से कम नही ही दिया जाना चाहिए।
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