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इस भूल भुलैया में दफन है अरबों का खजाना, जो भी गया अंदर नहीं लौटा वापस।

 

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भूलभुलैया / बड़ा इमामबाड़ा - Bhool Bhulaiya/ Bada Imambada


इस भूल भुलैया में दफन है अरबों का खजाना, जो भी गया अंदर नहीं लौटा वापस


लखनऊ : बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ की एक ऐतिहासिक धरोहर है इसे भूल भुलैया भी कहते हैं इसको अवध के नवाब असफ उद दौला ने 1784 में बनवाया था, इसे आसिफी इमामबाड़ा के नाम से भी जाना जाता है


लखनऊ की भूलभुलैया बड़े इमामबाड़े के उपरी हिस्से में 105 मीटर दायरे में फैला इमामबाड़े का वो अभिन्न अंग है जो न सिर्फ लखनऊ बल्कि पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। भूलभुलैया असल मे सैंकड़ो मार्ग और सुरंगों की वो जटिल प्रणाली होती है, जिसमे कोई भी आसानी से भ्रमित हो सकता है। 


बड़ा इमामबाडा लखनऊ के चौथे नवाब असफ-उद-दौला ने अकाल ग्रस्त अवध की प्रजा को रोजगार देने के मकसद से बनवाया था। इस इमामबाड़े का निर्माण आसफ़उद्दौला ने 1784 में अकाल राहत परियोजना के अन्तर्गत करवाया था। यह विशाल गुम्बदनुमा हॉल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। अनुमानतः इसे बनाने में उस ज़माने में पाँच से दस लाख रुपए की लागत आई थी। यही नहीं, इस इमारत के पूरा होने के बाद भी नवाब इसकी साज सज्जा पर ही चार से पाँच लाख रुपए सालाना खर्च करते थे।


ईरानी निर्माण शैली की यह विशाल गुंबदनुमा इमारत देखने और महसूस करने लायक है। इमारत की छत तक जाने के लिए ८४ सीढ़ियां हैं जो ऐसे रास्ते से जाती हैं जो किसी अन्जान व्यक्ति को भ्रम में डाल दे जिससे आवांछित व्यक्ति इसमें भटक जाए और बाहर न निकल सके। इसीलिए इसे भूलभुलैया कहा जाता है। 


इस इमारत की कल्पना और कारीगरी कमाल की है। ऐसे झरोखे बनाए गये हैं जहाँ से मुख्य द्वारों से प्रविष्ट होने वाले हर व्यक्ति पर नज़र रखी जा सकती है जबकि झरोखे में बैठे व्यक्ति को वह नहीं देख सकता। ऊपर जाने के तंग रास्तों में ऐसी व्यवस्था की गयी है ताकि हवा और दिन का प्रकाश आता रहे। दीवारों को इस तकनीक से बनाया गया है ताकि यदि कोई फुसफुसाकर भी बात करे तो दूर तक भी वह आवाज साफ़ सुनाई पड़ती है। छत पर खड़े होकर लखनऊ का नज़ारा बेहद खूबसूरत लगता है। आप कभी लखनऊ जाएं तो इन्हें अवश्य देखिए, बेहद शानदार है बड़ा इमामबाड़ा। 


इसमें विश्व-प्रसिद्ध भूलभुलैया बनी है, जो अनचाहे प्रवेश करने वाले को रास्ता भुला कर आने से रोकती थी। इसका निर्माण नवाब ने राज्य में पड़े दुर्भिक्ष से निबटने हेतु किया था। इसमें एक गहरा कुँआ भी है। एक कहावत है के जिसे न दे मोला उसे दे आसफूउद्दौला। नवाब असफ उद दौला बड़े ही दरियादिल इंसान थे उनके बारे में कहावत थी के 'जिसको ना दे मौला, उसको दे असफ उद दौला' 1784 में लखनऊ में भयंकर अकाल पड़ा, पूरा अवध दाने दाने का मोहताज हो गया तो लोग मदद मांगने नवाब के पास गये, तब नवाब साहब को उनके वजीरो में सलाह दी के वो खजाने में जमा राशि गरीबो में बाँट दे। मगर नवाब साहब का मानना था के ऐसे खैरात में धन बांटने से लोगो को हराम का खाने की आदत पड़ जाएगी। इसलिए उन्होंने रोजगार देने के लिए एक इमारत का निर्माण कार्य शुरू करवाया जिसको बाद में बड़ा इमामबाड़ा नाम दिया गया।


इमामबाड़ा बनवाने से पहले नवाब साहब ने इसके नक़्शे को बनवाने के लिए एक मुकाबला करवाया था जिसे दिल्ली के एक मशहूर वास्तुकार किफ़ायत उल्लाह ने जीता था, उनके बनाये नक़्शे के तहत 14 साल में बनकर तैयार हुए इमामबाड़े के परिसर में एक असफी मस्जिद, बावड़ी और भूलभुलैया भी मौजूद है। इमाबाड़े के निर्माण के दौरान पूरे लखनऊ के बाशिंदे काम करने आते थे, और ऐसा माना जाता है की गरीब लोग दिन में इमारत को बनाते थे और अमीर ऊँचे ओहदे के लोग रात में उसे तोड़ देते थे।


परिसर में मौजूद शाही बावड़ी और अस्फी मस्जिद का डिजाईन भी किफायत उल्ला ने तैयार किया था, ऐसी धारणा है की इस बावड़ी के कुँए में गोमती नदी से एक गुप्त रास्ते से पानी आता था और उसी पानी में खजाने का नक्शा और चाबी भी फेकीं गई थी।


भूलभुलैया - बड़े इमामबाड़े के निर्माण के दौरान वास्तुकारों के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी, क्यूंकि नवाब साहब इमामबाड़े के मुख्य कक्ष को बड़ा ( 170 x 55 फीट ) बनवाना चाहते थे वो भी बिना किसी स्तंभ ( PILLAR ) के ताकि उसमे ज्यादा से ज्यादा लोग इकट्ठे होकर प्रार्थना कर सके, अब चुनौती ये थी के बिना स्तम्भ के भारी भरकम छत्त और गुम्बद का वजन ये इमारत कैसे झेल पाएगी ?


कई हफ्तों तक विचार करने के बाद फैसला लिया गया के छत्त को खोखला बनाया जाएगा जिस से छत्त का आधा वजन कम हो जाएगा जो की इमारत की दीवारे बिना सहारे के झेल लेंगी, तब जाकर छत्त पर सैंकड़ो दरवाजे बनाये गये जो आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए है और इस अद्भुत रचना को नाम दिया गया भूलभुलैया। दीवारों को देखने पर अंदाजा होता है की पर्यटन विभाग भूलभुलैया को भूल गया है, कई जगह चूना झड रहा है, पत्थर उखड रहे है और जहाँ दीवार जर्जर नहीं थोड़ी सही हालत में है वहां कुछ आशिको ने इबारते लिख रखी है। कुल मिला कर 1024 में से कुछ दरवाजे जर्जर होके बंद हो चुके है और धीरे धीरे बाकी का हिस्सा भी उसी कगार पर है।


भूलभुलैया / बड़ा इमामबाड़ा - लखनऊ - Bhool Bhulaiya/ Bada Imambada - Lucknow Uttar Pradesh

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